Monday 27 October 2014

IAS Inspirational Story- निरीश राजपूत कैसे अखबार बांटने वाला निरीश बना आईएएस



निरीश के पिता कपड़ों की सिलाई का काम करते थे। महज़ 15 बाय 40 फीट के छोटे से मकान में निरीश अपने 3 भाई-बहिनों और माता-पिता के साथ रहते थे। बचपन से ही मेधावी छात्र रहे निरीश की पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई। पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए निरीश ने अखबार बांटने का काम किया। वे पिता के साथ सिलाई में भी हाथ बंटाते थे। निरीश ने अपनी प्रतिभा के दम पर 10 वीं में 72 प्रतिशत अंक हासिल किए। आगे की पढ़ाई के लिए वे ग्वालियर आ गए जहां उन्होंने सरकारी कॉलेज से बीएससी और एमएससी दोनों में पहला स्थान हासिल किया। यहां वे पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब करते हुए सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगे।

बकौल निरीश, “मैं नहीं जानता था कि आईएएस अफसर कैसे बना जाता है, लेकिन इतना जानता था कि देश की इस सबसे चुनौतीपूर्ण परीक्षा में सलेक्ट होना मेरी किस्मत बदल देगा।” हालांकि, चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही थीं। इस बीच निरीश विश्वासघात का शिकार भी हुए। उनके एक मित्र ने उत्तराखंड में नया कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला और निरीश को यहां पढ़ाने का आग्रह इस वादे के साथ किया कि इंस्टीट्यूट की अच्छी शुरुआत हो जाने पर वह निरीश को सिविल सर्विसेज की तैयारी के लिए स्टडी मटीरियल उपलब्ध करा देगा।

2 वर्षों तक निरीश की कड़ी मेहनत के चलते जब वह इंस्टीट्यूट प्रसिद्ध होकर मुनाफा कमाने लगा तो उस मित्र ने निरीश को नौकरी से निकाल दिया। इस घटना के बाद निरीश दिल्ली चले आए। दिल्ली में अंकित नाम के युवक से उनकी दोस्ती हो गई, जो खुद भी आईएएस की तैयारी कर रहा था। निरीश उसके साथ रहकर पढ़ाई करने लगे। वे दिनभर में लगभग 18 घंटे पढ़ाई करते थे। निरीश बताते हैं, “मैंने किसी कोचिंग इंस्टीट्यूट का सहारा नहीं लिया, बल्कि अंकित के ही नोट्स और किताबों से तैयारी जारी रखी।”



सिविल सर्विसेज परीक्षा में तीन बार असफल रहने के बावजूद निरीश हताश नहीं हुए। आखिरकार वर्षों की तपस्या सफल हुई और अपने चौथे प्रयास में निरीश ने आईएएस ऑल इंडिया मेरिट में 370 वीं रैंक हासिल कर पूरे देश में अपने परिवार का नाम रोशन किया।